1935 का भारत शासन अधिनियम

 



यह अधिनियम अभी तक पारित सभी अधिनियम में से सबसे बड़ा अधिनियम है | इसमें 321 अनुच्छेद , 10 अनुसूची थी  वर्तमान में 75% संविधानिक ढांचा इसी एक्ट पर आधारित है |

इस एक्ट के पारित से भारत का शासन एकात्मक था  इसके द्वारा भारत में पहली बार संघात्म सरकार  की स्थापना हुई | भारतीय संघ का निर्माण ब्रिटीस  भारतीय प्रान्तों और देशी रियासतो से मिल कर होना था | प्रान्तों का विलय अनिवार्य था लेकिन देशी रियासतों का विलय एच्छिक था जो देशी रियासते भारतीय संघ में विलय होना चाहती थी उन्हें " स्टूमेंट ऑफ़ एक्सेस " पर हस्ताक्षर करना था ,लेकिन कुछ देशी रियासते के शासको इंकार कर देने से भारतीय संघ अस्तित्व में नहीं आ सका सैन्धान्तिक रूप से तो संघात्मक सरकार का प्रावधान हुआ , लेकिन व्यावहारिक रूप से यह अस्तित्व में नहीं आ सका | इसी लिए इसकी आलोचना करते हुए इसे " निरंकुशता का एक्ट " भी कहते  है 

  • इसके द्वारा भारत में संघीय" न्यायालय या फेडरल कोर्ट " की स्थापना हुई लेकिन यह अंतिम अपीली न्यायालय नहीं था , क्योकि इसके विरुद्ध ब्रिटेन स्थित प्री काउन्सिल में होता था | 
  • इसके प्रान्तों में द्विशासन प्रणाली  को समाप्त कर दिया , प्रांतीय स्वयेतता दे दी गई , लेकिन द्विशासन केंद्र में लागू कर दिय गया |
  • भारत में संघ लोक की स्थापना 
  • प्रांतीय स्वयेतता उपबंध अप्रैल 1937 में लागु किया गया , इसके तहत भारत के 11 प्रान्तों में चुनाव हुआ जिसमे कांग्रेस 6 प्रान्तों में पूर्ण बहुमत प्राप्त कि थी | चित्र 

  • इसके द्वारा 11 प्रान्तों में 6 प्रान्तों में विधान मण्डल को द्विसदनात्मक बना दिया गया|  (उत्तेर प्रदेश , कर्नाटक , बिहार , आंध्रप्रदेश , तेलगाना )चित्र 

  • सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का विस्तार हुआ , मुसलमानों के साथ-साथ दलितों को और सिख्खो को अलग से प्रतिनिधित्व मिला | 
  • इसके द्वारा सर्व प्रथम बड़े घर की महिलाओ को वोट देने का अधिकार मिला (1950ई. को सभी भारतीय महिला को वोट देने का अधिकार मिला )


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